केदारघाटी में आई दैवीय आपदा की 7वीं बरसी आज

उच्च हिमालय में बसा विश्व प्रसिद्ध बाबा केदारनाथ के धाम में 16-17 जून 2013 को चैरावाड़ी ताल (गाँधी सरोवर) से आए बाढ़ के सैलाब ने केदारपुरी समेत केदारनाथ के पैदल रास्तों में बसे बाजारों और उसके निचले इलाकों को ऐसा नेस्तनाबूत किया कि उनका नामो निशान ही मिट गया। आज भी वह भयावाह मंजर आँखों के सामने आता है तो रूह कांप जाती है। बाबा के दशनों के लिए आए देश-विदेश के हजारों श्रद्धालुओं को बाढ़ की भीषण लहरों ने असमय ही मौत के घाट उतार दिया। सरकारी आंकड़ों भले ही इस आपदा में मरने वालों की संख्या साढ़े चार हजार बताई गई हो लेकिन प्रत्यक्ष दशियों की माने तो आपदा में मरने वालों की तादात 15 हजार से ऊपर थी। इस घाटी के अधिकांश लोगों का रोजगार केदारनाथ यात्रा पर ही निर्भर रहता है ऐसे में रोजगार करने गए लोग प्रकृति की इस विभिषीका के आगे सदा के लिए मौन हो गए। किसी का जवान बेटा तो किसी का सुहाग छिन गया। किसी का भाई तो किसी कि हाथों की मेंहदी सुखने से पहले ही उसकी दुनियां उजड़ गई। चारों तरफ चीख पुकार शोक विलाप ही दिखाई दे रहा था। लोगों के दिलों में इस त्रासदी का इतना भय था समा गया था कि लोग केदारनाथ दोबारा आना तो रहा दूर केदार के नाम से ही डर जा रहे थे। हालांकि उसके बाद स्थितियां धीरे धीरे बदलने लगी।आपदा के बाद उत्तराखंड और केन्द्र सरकार ने यहां युद्ध स्तर पर पुर्ननिर्माण के कार्य किए। हाड़कपाती ठंड और दर्जनों फीट बर्फ होने के बाद भी शीतकाल के दौरान भी पुर्ननिर्माण के काम बंद नहीं किए परिणामस्वरूप 2015 में ही यहां श्रद्धालुओं की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिला। आपदा पर भक्तों की आस्था भारी पड़ने लगी और वर्ष दर वर्ष यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी तो व्यवस्थाएं भी दुरूस्त होती चली गई। आपदा के कारण छिन्न भिन्न हुआ रोजगार भी पटरी पर लौटने लगा। आलम यह रहा कि बीते वर्ष रिकार्ड तोड़ 10 लाख से अधिक भक्तों ने बाबा के दरबार में मथा टेका। लेकिन इस वर्ष यात्रा आरंभ होने ठीक एक माह पूर्व कोरोना वायरस ने देश में दस्तक दे दी जिस कारण इस वर्ष यात्रा को स्थगित करना पड़ा।