आधुनिक दौर में आज भी इस जगह घराट का हो रहा प्रयोग

आधुनिकता के इस चकाचैध भरे दौर में भले ही पहाड़ी चक्कीयां यानि की घराट अब न दिखाई देते हों लेकिन रूद्रप्रयाग के जखोली विकास खण्ड के दर्जनों गाँव आज भी घराटों पर ही अपने अनाज की पिसाई करवाते हैं। आधुनिकता के इस दौर में पानी से चलने वाली पहाड़ की चक्कीयां घराटों की जगह बिजली और डीजल से चलने वाली चक्कीयों ने ले ली हो मगर रूद्रप्रयाग के जखोली विकाखण्ड के दर्जनों गाँव आज भी घराट पर ही अपने अनाज की पिसाई करवाते हैं। जखोली के बजीरा गाँव में अनिल शाह घराट पर ममणी, गोर्ती, बजीरा, उरोली धनकुराली, द्यूत, कपणिया, बज्वाड़, स्यालदूरी समेत दर्जनों गाँवों का अनाज की पिसाई करता है। बड़ी बात तो यह है कि इस घराट में आज भी पुरानी परम्पराओं का निर्वहन हो रहा है। पिसाई के बदले रूपये न देकर अनाज ही दिया जाता है। हालांकि गांव में विद्युत की चक्कीयां भी मौजूद हैं लेकिन बरसात के करीब पांच माह लोग अपने आज को घराट पर ही पिसवाते हैं, कारण यह है कि घराट पर पिसा आटा स्वदिष्ट तो होता ही है बल्कि पौष्टिक भी होता है।क जमाना था जब पहाड़ में घराटों की भरमार रहती थी, लेकिन धीरे-धीरे आधुनिकीकरण होने के साथ साथ डीजल और विद्युत की चक्कीयों ने जगह ली और घराटों का अस्तित्व खत्म होता चला गया। स्थिति यह है कि आज ये घराट विलुप्त के कगार पर खड़े हैं, अनिल शाह जैसे चुनिला लोगों ने ही पहाड़ की इस विरासत को संजोया हुआ हैं। दरअसल पहाड़ की चक्कीयां वैज्ञानिक ढंग से निर्मित की जाती हैं। पानी से चलने के कारण इसे किसी नदी अथवा गाड़-गधेरे के किनारे लगातया जाता है। पानी की धार को पत्थर से बनी मोटर नुमा ट्रावाहीन में डाला जाता है और उसके बाद वे पानी के वेग के साथ घुमने लगती है। अगर सरकारें इस ओर गम्भीरता से कार्य करती हैं तो इसी पद्धति से छोटी जल विद्युत परियोजनाओं का भी निर्माण किया जा सकता है जो यहां के लोगों के लिए स्वरोजगार के क्षेत्र में वरदान साबित हो सकता है।