कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए इसका असर पड़ रहा हरिद्वार महाकुंभ पर

हरिद्वार — प्रदेश में त्योहारी सीजन के बाद बढ़ती ठंड में कोरोना की दूसरी लहर का खतरा सता रहा है। इसका असर नजदीक आ रहे हरिद्वार महाकुंभ पर भी पड़ सकता है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने साफ कर दिया है कि यदि कोरोना संकट गहराया तो अखाड़ों के शाही स्नान की सांकेतिक परंपरा का निर्वहन किया जाएगा। उधर, प्रदेश सरकार ने भी स्पष्ट किया है कि महाकुंभ का जो भी स्वरूप संत समाज तय करेगा, उसका अक्षरश: पालन होगा। शासन में 22 नवंबर को संतों के साथ बैठक है, जिसमें अखाड़ा परिषद अपनी यह राय रख सकता है। दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामलों में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए अखाड़ा परिषद ने यह राय प्रकट की है। परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरी और महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरी महाराज का कहना है कि महाकुंभ की भव्यता और दिव्यता कोरोना की स्थिति पर निर्भर करेगी। बता दें कि प्रदेश में कोरोना की दस्तक देने के दिन से ही महाकुंभ पर इसका साया मंडराने को लेकर आशंकाएं गहराती रही हैं। देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में कोरोना संक्रमितों की संख्या में कमी आई, लेकिन खतरा अब भी बना हुआ है।
इसकी बानगी दिल्ली है, जहां कोरोना संक्रमितों की संख्या में वृद्धि हो रही है। राज्य सरकार का स्वास्थ्य विभाग भी मान रहा है कि फेस्टिवल सीजन और बढ़ती सर्दी में कोरोना संक्रमण बढ़ सकता है। यानी कोरोना की दूसरी लहर राज्य में आ सकती है। हरिद्वार महाकुंभ का आयोजन जनवरी 2021 से अप्रैल 2021 तक होना है। ऐसे में महाकुंभ पर कोरोना का साया बना हुआ है। इस खतरे का एहसास संत समाज को भी है।
कोरोना काल में महाकुंभ में जुटने वाली भीड़ को लेकर सरकार आशंकित है। ऐसी परिस्थितियों में अखाड़ा परिषद का बयान सरकार को राहत देने वाला माना जा रहा है। हालांकि सरकार हिंदू धर्म के इस सबसे बड़े आयोजन के स्वरूप के बारे में फैसला संत समाज पर ही छोड़ रही है। उसका कहना है कि संत समाज जो तय करेगा, सरकार को उसका पालन करना है। सरकार की ओर से सारी परिस्थितियां संत समाज के समक्ष रख दीं जाएंगी।