बर्फ़ीले इलाकों का ऊंट कहे जाने वाले याको की संख्या फिर से उत्तराखंड में बड़ी
चमोली– विलुप्त की कगार पर खड़े बर्फ़ीले इलाकों का ऊंट कहे जाने वाले याक अब एक बार फिर उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में बढ़ने लगे हैं। जो एक शुभ संकेत है। चमोली पशुपालन विभाग ने याक संरक्षण के लिए एक योजना भी तैयार की है। भारत- तिब्बत ब्यापार की मुख्य रीढ़ याक चमोली जिले की नीती घाटी के द्रोणागिरी के बुग्यालों में रह रहे है। जो अब शीतकाल में निचले इलाकों में आने लगे हैं। आज कल सूकी के जंगलों में याक विचरण करते दिख जायेंगे। क्षेत्र के निवासी बताते हैं कि याक तिब्बत ब्यापार का मुख्य माल बाहक था। लेकिन बीते कुछ बर्षो मे बर्फीले तूफान व हिम गिलेशियरों मे दबने से इनकी मौत हो गई। जिससे इन की संख्या कम हो गई थी। लेकिन अब याकों को फिर से देखना सुखद अनुभव है। चमोली जिले में याकों के सम्वर्धन का कार्य विगत वर्षों से चल रहा है। सिक्किम, भूटान की तरह उत्तराखंड के चमोली जिले के द्रोणागिरी के बुग्यालों में याक का परिक्षेत्र बना है। जिला मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ.शरद भंडारी बताते हैं कि अभी जिले में 11 याक हैं। जिनमें 7 मेल व 4 फीमेल याक हैं।
याक कभी चमोली पिथौरागढ़ के ऊंचाई वाले इलाकों में बड़ी संख्या मे थे। बर्फ दबने तथा इनकी उचित ब्यवथा न होने से इनकी संख्या मे कमी आ गई थी। लेकिन अब इनकी संख्या मे बढ़ोतरी हई है। सीमा पार तिब्बत से वहां के ब्यापारी इन्ही याक के माध्यम से अपने देश की वस्तुओं को ब्यापार के लिये चमोली की सीमा में लाते थे। 1960 के बाद जब भारत- तिब्बत ब्यापार बंद हो गया। तो फिर सीमा पार से याक नहीं आये। पशुपालन विभाग याकों के संरक्षण की योजना पर भी कार्य कर रहा है। याक केंद्र लाता मे याक शेड के लिए 24 लाख,शीत काल मे चारा के लिए 2 लाख, याक केंद्र मे 4 दैनिक श्रमिकों के बेतन के लिए 4.15 की धन राशि स्वीकृत की गई है। पर्यटक याक की सवारी का आनन्द ले सकें इस के लिए वर्ष 2018 में प्रयोग के तौर पर माणा और बदरीनाथ के बीच याक की सवारी के तौर पर किया भी गया।