राज्य नेतृत्व को क्या डर था की पौढ़ी की जिया पंचायत अध्यक्ष विजेता रचना बुटोला को स्थानीय सांसद से भी नहीं मिलने दिया गया !

देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति इस समय अनिश्चितता और असुरक्षा के दौर से गुजर रही है। राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा तेज़ है और सरकार व संगठन के बीच की घबराहट भी अब खुलकर सामने आने लगी है। क्रेडिट लेने की होड़ और अंदरूनी खींचतान यह संकेत दे रही है कि मुख्यमंत्री धामी की कुर्सी पर संकट गहराता जा रहा है। 14 अगस्त को पौड़ी जनपद में भाजपा प्रत्याशी रचना बुटोला ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। 38 में से 33 वोट पाकर उन्होंने शानदार सफलता हासिल की। लेकिन इस जीत से राहत पाने के बजाय मुख्यमंत्री धामी और ज़्यादा असहज नज़र आए।
सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि आखिर रचना बुटोला को अपनी जीत का श्रेय लेने से क्यों रोका गया? परिणाम घोषित होने से पहले ही उन्हें देहरादून बुला लिया गया। न तो वे विजय जुलूस में शामिल हो पाईं और न ही अपनी जीत का प्रमाणपत्र लेने की अनुमति मिली। उनकी जगह भरत सिंह रावत को प्रमाणपत्र लेने भेजा गया। यह उत्तराखंड का पहला मामला माना जा रहा है जब विजयी अध्यक्ष अपनी ही जीत का जश्न न मना सका।
इस घटनाक्रम को और गंभीर बना दिया उन आरोपों ने, जिनमें कहा गया कि पौड़ी जिले के जिला पंचायत अध्यक्ष को “किडनैप” कर काउंटिंग से दूर रखा गया। सूत्रों का दावा है कि अगर वे मौजूद रहते तो कुछ चेहरे बेनकाब हो जाते। यही नहीं, नैनीताल, बैतालधाट और अन्य इलाकों में भी भाजपा कार्यकर्ताओं को रोकने या “किडनैप” करने की घटनाएं सामने आईं। नैनीताल मामले में तो कोर्ट ने भाजपा को कड़ी फटकार तक लगाई। इतना ही नहीं, रचना बुटोला को पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद अनिल बलूनी से मिलने तक नहीं दिया गया। पौड़ी में मौजूद दिग्गज नेता—धन सिंह रावत, सतपाल महाराज और अनिल बलूनी—को भी पूरी तरह हाशिए पर डाल दिया गया। जीत का सारा क्रेडिट मुख्यमंत्री धामी को दिलाने की कोशिश साफ दिखाई दी। इसके बाद रचना बुटोला को सीधे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के घर फोटो खिंचवाने भेजा गया, ताकि अंदरूनी कलह को ढंका जा सके।
ये घटनाक्रम साफ बताते हैं कि धामी सरकार असुरक्षा और डर की छाया में काम कर रही है। सवाल उठ रहा है कि क्या मुख्यमंत्री वाकई अपनी कुर्सी पर संकट महसूस कर रहे हैं?