नियमों को ताक में रख कर कराया जा रहा बाल श्रम जिम्मेदार प्रशासन बेखबर

प्रशासन की अनदेखी के चलते क्षेत्र में कई जगह बाल श्रम हो रहा है। कई जगह ऑटो इस्पार्क सर्विस सेंटर औऱ ढाबों पर 10 से 15 साल के बच्चे बिना रोक टोक के दिहाड़ी मजदूरी कर रहे है। मजदूरी का झांसा देकर बाल श्रमिकों से कठोर श्रम करवाया जा रहा है। इतना ही नहीं विभिन्न निर्माण कार्य पर भी ठेकेदार नियमों को ताक में रखकर बालश्रमिकों से काम करवा रहे है। इतना कुछ होने के बाद भी अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे है। निरीक्षण के नाम पर मात्र औपचारिकता की जाती है, लेकिन यह बाल श्रमिक उन्हें नजर नहीं आते है। खासकर ग्रामीण क्षेत्र में स्थानीय बाल श्रमिकों के साथ- बड़ा अन्याय किया जा रहा है,बाल श्रमिकों से महज कुछ ही मानदेय का वादा कर कठोर श्रम करवाया जाता है। सरकार भले ही कानून बनाकर बालश्रम को लेकर काफी सख्त है, लेकिन यह कानून धरातल पर दम तोड़ता नजर आ रहा है। इन कार्यों में अधिकांश गरीब परिवार के बच्चें दिहाड़ी मजदूरी कर रहे है।
करवाते है कठोर श्रम : मात्र कुछ ही मजदूरी का झांसा देकर यह लोग बाल श्रमिकों से कठोर श्रम भी करवाते है। कानून के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी व्यवसाय में नियुक्त करना या किसी भी तरह का श्रम करवाना अपराध की श्रेणी में आता है ऐसा करने पर संबंधित व्यक्ति के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने का प्रावधान भी है। इसके बावजूद यहां पर इन आयु के बच्चों को अल्प मानदेय का झांसा देकर दिहाड़ी मजदूरी करवाई जा रही है। उन्हें दिनभर मजदूरी के 140 से 170 रुपए दिए जा रहे है। इनसे कार्य करवाने वालों का कहना है कि मजदूर नहीं मिलने से इन्हें ही काम दे रहे है। क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरी व कठोर श्रम करने वाले अधिकांश बालश्रमिक अन्य जिलों व राज्यों के है जिसमें उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश के बच्चे भी निर्माण के कार्यों में लगे हुए है।
नहीं होती कार्रवाई
क्षेत्र में बालश्रम करवाने वाले लोगों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं होती है ऐसे में बाल श्रमिकों की संख्या में भी हर साल इजाफा होता जा रहा है। क्षेत्र में निर्माणाधीन इमारतों व अन्य कार्यों पर बालश्रम धड़ल्ले से चल रहा है। बालश्रम में जुटे बालक व किशोर विद्यालय की चौखट से दूर है। खास बात तो यह है कि बालश्रम चोरी छिपे तो कई जगह होता है, लेकिन क्षेत्र में सड़कों पर खुलेआम बालश्रम हो रहा है। यहां से दिनभर में कई अधिकारियों की आवाजाही होती है। इसके बावजूद इनकी नजरे बालश्रमिकों पर नहीं पहुंच रही है।